Sri Nanak Prakash

Displaying Page 625 of 832 from Volume 2

१९२१

४४. शारदा मंगल, सिज़खां दा भाअु देखिआ साधू दरशन दा फल॥
४३ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ४५
{इज़क तिखां सिज़ख दी प्रीखिआ} ॥५..॥
{मज़ल दी निम्रता} ॥१७..॥
{लाला गोला वाला प्रसंग} ॥२५..॥
{संतां दे दरशन अते संगत दा फल} ॥४८..॥
दोहरा: नमो सारदा को सदा, सुमति रिदे परकाश
क्रिपा धारि पूरन करो, श्री गुर को इतिहास ॥१॥शारदा=सरसती विशेश गिआन लई देखो पूरबारध अधाय १ अंक २ दी
टीका ते भाव
अरथ: (हे) रिदे विच स्रेशट बुज़धी दा प्रकाश करने वाली शारदा (तैण) ळ सदा
नमसकार होवे क्रिपा करके श्री गुरू जी दा इतिहास (मेरे तोण) पूरन
करवावो
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: सुनीए श्री त्रेहण कुल मौरं!
प्रभु की कथा अगारी औरं
सिज़खी की सरिता१ बिसतारी
जहिण कहिण सगरे जगत मझारी ॥२॥
सिज़खन के मन मीन समानां
चहैण न बिरहि, होहिण हति प्राना२
लागे करन शबद अज़भासा
सिमरन सज़तिनाम परकाशा ॥३॥
सिज़खी भाअु देखिबे हेता
गमन कीन बेदी कुलकेता
मुझ को अपने लीन संगारे
पहुंचे इक पुरि जाइ मझारे ॥४॥
सिज़ख तिखां बसहि तिह थाना {इज़क तिखां सिज़ख दी प्रीखिआ}
जिह की अलप३ चलहि गुग़राना
करै सेव सिज़खन की सोइ
असन अचावहि जो घर होइ ॥५॥
संझ जि होइ, न प्रापति प्रात१


१नदी
२चाहुंदे नहीणविछोड़ा (नदी तोण), भावेण प्राण नाश हो जाण
३थोड़ी

Displaying Page 625 of 832 from Volume 2