Sri Nanak Prakash

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१९९६

५०. घाल ते मेहर, नानक रूप गुरू सिज़खी विचोण परख के दज़सिआ॥
४९ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ५१
{सिज़खी दी परख} ॥७..॥
{धांक रूप} ॥२९..॥
{मुरदा खां दा हुकम} ॥७१..॥
दोहरा: रिदा किदार सुधारनो, तजिनो सरब बिकार
सतिगुर करुना जल परै, भगति क्रिखी है सार ॥१॥
किदार=खेत, मलगुग़ार, किआरा संस: केदार॥
सुधारनो=सुआरना, साफकरना खेत दा सुधारना=गोडी करनी, घाह बूट
खेोत विचोण कज़ढंे, नदींा करना
क्रिखी=खेती संस: क्रि॥ि
सार=स्रेशट है सार दा भाव है कि सुहणी खेती होवे अुह जिस विच सभ
तोण वधीक कामयाबी होवे
अरथ: सारे विकाराण दा तिआग करना (मानोण) हिरदे रूपी खेत ळ सुधारना है,
(इस सुधरे खेत पर) सतिगुरू जी दी मेहर दा पांी पै जावे तां भगती
रूपी खेती स्रेशट (रूप विच) होवेगी*
चौपई: अस श्री प्रभु नै तप बहु ठाना
जहिण तहिण पसर सुजसु महाना
देश बिदेशन घर घर मांही
श्री नानक श्री नानक प्राहीण ॥२॥
मिलिहिण परसपर मानव ब्रिंदा
आवहिण दरशन हेतु मुकंदा
केतिक दरस करहिण घर जाहीण
केतिक रहैण प्रभू के पाहीण१ ॥३॥
भीर भूर की पुरि करतारा
खाइण समेण दुइ रुचिर अहारा
होइ अंन की तोट न कोई
रहै जु, देग२ अचै सभि कोई ॥४॥
दोहरा: देश बिदेशन ते तहां, बहु संगति भी आइ
अज़प्रमान गिनती न को, दरशन करि हरखाइ ॥५॥
चौपई: इस बिधि केतिक बरख बिताए*पिछले अधाय दे मंगल दे दोहरे नाल मिल के अरथ पूरन हुंदा है
१पास
२लगर तोण

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