Sri Nanak Prakash

Displaying Page 72 of 1267 from Volume 1

१०१

होवति ही तिह के घट मैण,
नर जीव दुखी भव मैण सभि कोअू
नाम जपै जब ही सुख सागर,
चेतन चीत अुदोति सु होअू ॥५६॥
नागुन=निरगुण अविलबति=आसरे संस: अविलबित॥
है=होके बिराजति=प्रकाशमान, शशोभित (अ)-जड़्ह-बी अरथ करदे हन
जंगम=अुह जो टुर फिर सके मुराद-जीव धारीआण-तोण है
भव=संसार सुख सागर=सुख दा समुंदर, भाव सुख दाता
अुदोति=चड़ना, अुदै होणा, प्रगटंा इस तुक विच चेतन ळ-सुख सागर-इस
भाव लई किहा है कि अुसदे प्रगट होण नाल जीव सुखी हो जाणदा है सु=चंगी तर्हां
अरथ: निरगुण तोण (नाम ळ) ऐअुण वडा जाणो:- कि (भावेण) अुहो (इज़को सदा
सुखदाई) परमातमा सारीआण देहां विच (वस रिहा) है
(जितने बी) जीवधारी (हन, की) नर, (की) नारी (अुसे) चेतन दे आसरे हो के
शशोभित (हो रहे हन)
(फेर) इन्हां (सारिआण) दे हिरदिआण विच (निरगुण चेतन दे) हुंदिआण संदिआण
मानुख ते जीव संसार विचसभ कोई दुखी है
(पर देखो) जदोण (कोई) नाम जपे (तदोण अुहो) चेतन चिज़त (विच) प्रगट (हो के)
चंगी तर्हां सुखदाता हो जाणदा है
भाव: प्रमातमा परीपूरण, घट घट विच विआपक है, पर फेर सभ कोई दुखी है
अचरज है कि अुह सुज़खां दा सागर है, अुसदे अंदर हुंदिआण जगत दुखी है
पर जद नाम जपो तां अुहो चतन अंदरोण प्रगट हो जाणदा है, ते सुखां दा दाता
बण जाणदा है इस विच इशारा इह है कि पहिलां अुह समान सज़ता करके
हुंदा है, प्रगट नहीण हुंदा नाम नाल अुह प्रगटदा है जद प्रगटदा है तां
अुसदी सुख सागरता दान करन वाली कला अपणा सुखदाई प्रभाव बखशदी
है, जिसतोण जीव सुखी हुंदा है सो सुख सागर दे अंदर हुंदिआण दुखी जीव ळ
सुखी नाम ने कीता तां ते नाम निरगुण तोण वडा होइआ, जो अुसदे होण ळ
सफलता देणदा है
सैया: संगुन ते वधि जानति हैण इव,
जे रस जाप मैण लीन विशाला
प्रेम सोण नाम वसो जब ही,
तब गोचर होति सरूप क्रिपाला
यांही ते -नाम अधीन सरूप-
लखो भगतंन भली मति शाला
धारि रिदे तजिबो न करैण,
निस बासुर जीहमै, जोण गल माला ॥५७॥

Displaying Page 72 of 1267 from Volume 1