Sri Nanak Prakash
१३६८
६. शारदा मंगल मात पिता अुपदेश ते अुन्हां दा बैकुंठ गमन॥
५ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ७
{मज़त नौका समान} ॥८..॥
{पिता प्रति अुपदेश} ॥१४..॥
{प्रमेशर किअुण नहीण दिसदा?} ॥१८..॥
{कालू जी ने बैकुंठ पहुंचे पितर देखंे} ॥४५..॥
{पिता कालू जी बैकुठ गमन} ॥५७॥
{माता त्रिपता बैकुठ गमन} ॥५८॥
{तलवंडी वासीआण ळ अुपदेश} ॥६३॥
{चाचा लालू जी ळ अुपदेश}॥७४-७५॥
{गुरू जी दी शुभ गुणां दी सैना} ॥७७-७९॥
दोहरा: सिंघ बाहनी, मात जग, अशटभुजी खल काल
नमसकार तिह चरन को, अुचरोण कथा रसाल ॥१॥
सिंघ बाहनी=शेर है सवारी जिस दी
अशटभुजी=अज़ठां बाहां वाली
सूचना: एथे रूपक बदलिआ है, शारदा चार भुजाण वाली है प्रंतू अधाय दसवेण
विच जाके संसा नहीण रहिणदा कि कवी जी इको रूप वकती दे दो प्रकार दे
रूपक बंन्हदे जाणदे हन, देखो अुतरारध अधाय २, अंक १, अधाय दसवेण
विच इसे अशट भुजी ळ कालका कहिणदे हन, अुस दीआण चार भुजा दज़सीआण
जाणदीआण हन सो ालबन कविजी ने चार कालका दीआण तेज मय, चार
सरसती दीआण शांतिमय एह अज़ठ भुजाण कज़ठीआण कीतीआण हन
अरथ: (जो) शेर ते असवार, जगत दी माता, अज़ठ भुजाण वाली, खलां ळ मारन वाली
है, ओस दे चरनां ळ नमसकार करके (अज़गोण होर) रसीली कथा अुचारदा हां
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: सुनहु कथा श्री फेरू नदन१!
श्रोतन के अघ ओघ निकंदन२
तलवंडी महिण दीन दयालारहितो कितिक बिताए काला ॥२॥
एक दिवस कालू ढिग आवा
हित समझावन बचन अलावा
हे सुत! ग्रिहसती रीति करीजै
बेख फकीरी अब तजि दीजै ॥३॥
आगे दरब जितो घर बारा
१हे श्री गुरू अंगद देव जी
२सारे पाप कज़टं वाली (कथा)