Sri Nanak Prakash
२०७८
५५. गुरु भजन महातम गुरू सतोत्र समावं दी तिआरी॥
५४ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ५६
{पिता नमित श्राध} ॥६..॥
{सुलखंी जी पहुंचे} ॥५२..॥
दोहरा: अहं बीज ममता शिफा, राग दैख बड टास
जग दल दुख सुख फल लगे, गुर भजि होइ बिनाश ॥१॥
अहं=मैण, मैण पुना, अहंता ममता=मेरा पना, मज़मत
शिफा=जड़्ह, जड़्ह जो जाले वाणूं फैलाई है संस: शिफा॥ (अ) जे इस दा मूल
संसक्रित पद शिंबा होवे तां अरथ है फली (ॲ) पाठांत्र लिखत विच किते किते
सिटे भी है, सिज़टे जो कंक आद ळ फल पैणदे हन
राग=पिआर दैख=वैर टास=टाहण दल=पज़ते
अरथ: अहंता (रूपी) बीज है, ममता (रूपी) जड़्ह है, राग दैख वडे टाहण हन,
जगत (विच दिज़स रहे जीव) पज़ते हन, दुख सुख (इन्हां पतिआण दे विच) फल
लगे हन (जिस अज़गान रूपी ब्रिज़छळ, हे मन) गुरू ळ भज (जो इस दा)
नाश होवे
चौपई: सपतमि बासुर१ सगरो ऐसे
बीत गयो बरनन किय जैसे
ग्रामन के नर जो तहिण गए
पुरि करतार रहति सो भए ॥२॥
रैन बिखे डेरा करि सोए
जिन मन दरशन प्रेम भिगोए
सवा जाम जामनि रहि जबि ही
सभिनि शनान कियो अुठि तबि ही ॥३॥
बहुर बिलोकहिण सतिगुर ताईण
पद पंकज पर सीस झुकाई
किरतन सुणहिण एक मन होई
रिदे बिकार न बापे कोई ॥४॥
अशटमि दिवस२ प्रकाशो भाना३
भोजन भे तयार बिधि नाना
धरमसाल ते अुठि सुखरासा
गए सुलखंी केर अवासा ॥५॥
१सपतमी दा दिन
२अशटमी वाले दिन
३सूरज चड़्हिआ