Sri Nanak Prakash
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४५. श्री गुरू चरण मंगल तलवंडी तोण टुरना॥
{शिवनाभ पास बणावटी नानक} ॥३..॥
{राइ ने नानक नाम ते तालाब बणाअुणा} ॥४३॥
{भगती रूपी नदी दा द्रिशटांत} ॥४८..॥
दोहरा: श्री गुरु पग सुरतरु सरस, स्रबदा* मंगल खान
दारिद बिघन न बापई, बसहिण रिदे गतिदान ॥१॥
सुरतरु=कलप ब्रिज़छ संस: सुरतरु:॥ सरस=सुंदर
दारिद=दरिज़द्रता रीबी, कंगालताई
गतिदान=मुकती दा दान
अरथ: श्री गुरू जी दे सुंदर चरण कलप ब्रिज़छ हन ते सदा ही खुशीआण दी खां हन,
(जिस) हिरदे विच इह बस जाण (ओथे लोक विच तां) विघन ते कंगालताई
वयाप ही नहीण सकदी (ते परलोक विच) मुकती दा दान (प्रापत हुंदा है)
स्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: जबहि बहुत भूपति अनुरागा
रंगयो प्रेम रंग वडभागा
सुनयो श्रोन जो हुते फकीरा
केतिक ढिग पहुणचे न्रिप धीरा ॥२॥
नाम आपनो नानक धरि कै {शिवनाभ पास बणावटी नानक}
पुरि के नरनसुनाइण अुचरि कै
जब निज श्रोन सुनहि अवनीपा१
चलि करि आवहि तिनहिण समीपा ॥३॥
बैसे संसे को जब पूछे
कछु न बतावहिण गयानहिण छूछे२
अस बिधि देखि सोचि करि राजा
और कियो परखन को काजा ॥४॥
हुती तहां जो सुंदर नारी
तिन सोण ऐसी गिरा अुचारी
जो पुरि बिखै बिदेशी आवहि
*पा:-सरब दा (अ)-सब दा
पा:-पीरा
१राजा
२सज़खंे
पा:-कोअु पुरख