Sri Nanak Prakash

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५१. सारदा मंगल सालसराइ जौहरी॥

{कौडे दा प्रसंग सुण गुरू जी दी समाधि} ॥२॥
{बिशंभरपुर - पटना} ॥२२॥
{सालस राइ जौहरी} ॥२८॥
भुयंग छंद: नमो सारदा रूप दोखं हरंती॥
सदा मंगला बुज़धि दैनी जयंती
भवा भैहरा दास की इज़छ पूरा
प्रकाशी तुही चौदहूं लोक भूरा* ॥१॥
दोखं=दोश, पाप (अ) कविता दे दोख अुह दूखं जो काव विच पैणदे हन
मंगल=खुशी
मंगला=खुशी दी दातीजयंती=जै दी दाती
भवा=भव-होणद, संसार, जनम, शिव, मंगल, दौलत, माल पदारथ वाला होण
दी दशा, प्रापती; अुज़चता, कुशलता
भवा=कुशलता दी दाती
भूरा=बहुत, सारे,संस: भूरि॥ इस तुक दा भाव इह है कि होर देव निज
अुपासकाण विच प्रकाशे हन, तैळ सारे लोकाण विच मत देश आदि सारे भेद छज़ड के
सभनां थावाण दे कवीआण ने अवाहन कीता है
अरथ: नमसकार है शारदा दे रूप ळ जो दूखंा ळ दूर करदी है, सदा खुशी दी
दाती है, बुज़धी ते जै दी दाती है, (हे तूंही) कुशलता दी दातीए! दास दा भै
(विघन पैं दा) दूर कीता है (अते सरस कविता लिखं दी) इज़छा पूरी
कीती है, तूंही चौदां लोकाण (विच) सारे प्रकाशी हैण
चौपई: भरथरि कौडे केरि प्रसंगा
सुनि श्री अंगदि प्रेम अुमंगा
लगी समाधि जुटे जुग नैना {कौडे दा प्रसंग सुण गुरू जी दी समाधि}
अंग अडोल न अुचरति बैना ॥२॥
श्रोता१ बकता२ हटि करि सभि ही
निज निज थान गए चलि तब ही
बीति गए जब जाम सताई
तदपि न चेतनता तन आई ॥३॥
खान पान इशनान बिहीने*पा:-रूरा-बी है
१सुणन वाले ते
२कहिं वाला (भाई बाला)

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