Sri Nanak Prakash

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५६. गुर चरण मंगल कमल नैन॥

{मरदाने अुज़पर ुशी दे बचन} ॥७, १५॥
{कवलनैन} ॥५७..॥
{कवलनैन पूरबला प्रसंग} ॥..१००॥
दोहरा: चंदन से श्री गुर चरन, मन इरंड ढिग लाइ
है सुगंधि मै काम को, सीतलता सुख पाइ ॥१॥
सुगंधिमै=सुगंधिमय=सुगंधी वाला, सुगंधित (अ) मैण सुगंधित हो गिआ हां
कामको=कंम वाला
अरथ: श्री गुरू जी दे चरण चंदन तुज़ल हन, (मैण आपणा) अरिंड (वरगा) मन
(रूपी बूटा अुन्हां दे) नेड़े लगा (के) सुगंधी वाला होके (ते) सीतलता दा सुख
पाके (हुण किसे) कंम वाला (हो गिआ हां)
भाव: इरंड दा बूटा निकंमा गिंिआण जाणदा है, नां संघणी छां नां मिज़ठा फल, नां
सुगंधी, नां लकड़ी किसे कंम दी, चंदन दे नेड़े लगके जे चंदन दी खुशबू
नाल छुह जावे तां अुस विच सुगंधी आ जावे तां तसीर सीतलता वाली हो
जाणदी है ते कई रोगां ळ दूर करन दा सुख अुस विज़च हो जाणदा है कवि जी
कहिणदे हन कि सतिगुरू जी दे चरनां दे सतिसंग नाल मैण सतोगुणी सुभाव
वाला, विकाराण रूपी रोगां तोणसुखी ते दूसरिआण ळ नाम दी खुशबू देण वाला
सुगंधीमय जन हो गिआ हां
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: सुनहु गुरू अंगद गतिदानी!
आगे गमने श्री गुनखानी
कित सागर कित पर जाईण
हसन हेत गुर गिरा अलाई ॥२॥
मरदाने फल तैण भलि खाए
भयो कि नहीण अजहुण त्रिपताए१?
बंदि हाथ दै बोलयो बानी
करी अवज़गा मैण सुखदानी! ॥३॥
अधिक अनुचिते बैन बखाने
तां को फल भा दुख प्रगटाने
तुम क्रिपाल निज बिरद सणभारा
मुझहि मुचावा२ दैत सणघारा३ ॥४॥

१रजिआ
२बचाइआ
३मार दिज़ता

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