Sri Nanak Prakash

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८. चंडी मंगल गंगा विखे लहिणदे वल पांी अुछालना॥
७ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ९
{गुरू जी हरिदुआर पहुंचे} ॥२॥
{गंगा विखे लहिणदे वज़ल पांी अुछालंा} ॥७॥
{पंडतांदे मन दी दौड़} ॥३०..॥
{चौणके दी भिज़ट} ॥४३..॥
{गंगा दा दरशना वासते आअुणा} ॥५९..॥
{संत लछण} ॥६५..॥
{गंगा ने भंडारा करना} ॥७१..॥
दोहरा: खल खंडन जग मंडनी,
भुज दंडन बरबंड॥
रुंड करन अर मुंड भखि,
जै जै चंडि प्रचंड ॥१॥
मंडनी=मंडं वाली, सुआरन वाली
भुज दंडन=डंडे वरगीआण बाहां वाली, (अ) दंड देण दी समरज़था वालीआण भुजाण
वाली
बरबंड=बलवंत (अ) वर वंडं वाली
रुंड करन=सिर तोण धड़ जुदा करन वाली रुंड=धड़ जिस तोण सिर लहि
जावे संस: रुंड॥
मुंड=धड़ तोण कज़टिआ सिर (अ) मुंड इक दैणत जिस ळ चंडी ने मारिआ
सी संस: मुंड=सिर॥
भखि=खा जाण वाली (अ) तबाह करन वाली, दल सिज़टं वाली संस:
भकश, धातू भकश=१. खांा, २. तबाह करना, ३. वज़ढ सुज़टंा॥
अरथ: दुशटां ळ खंडन करके जगत ळ संवारन वाली डंडिआण वरगीआण (मग़बूत)
भुजाण वाली ते बलवान, धड़ सिर तोण अज़ड करके सिर दल सिज़टं वाली, तेज
वाली चंडि (तैळ) जै होवे जैहोवे
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद सुनीए इतिहासा
मंद मंद गमने सुखरासा
आयो श्री गंगा को मेला {गुरू जी हरिदुआर पहुंचे}
भीर भूर तहिण भई सकेला१ ॥२॥
पूरब पशचम अुज़तर केरे
नर दज़खं के आइ घनेरे
महां पुरब लखि मज़जन कारन


१इकज़ठी

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