Sri Nanak Prakash
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६४. गुरचरन प्रेम मंगल सिज़धां तोण विदा होणा॥
{मुंदा संतोख..} ॥१२ ॥ {प्राननाथ दी शरधा} ॥३२..॥
{नौण नाथ} ॥३८.. ॥ {छे जती} ॥४०॥
{चौरासी सिज़धां दे नाम} ॥४१.. ॥ {छे जती ही किअुण?} ॥५०॥
{अज़ठ किसम दा भोग} ॥५१.. ॥ {सिज़धां तोण विदा होणा} ॥६०..॥
दोहरा: मन मूखक बिल बाशना, पकरैण कौन अुपाइ॥
पारद श्री गुर प्रेम पग, पावहु है थिर थाइ ॥१॥
मूखक=चूहा संस: मूकि=जो चोरी करे, चूहा॥
बिल=खुड संस: बिलण॥
पारद=पारा
आखदे हन कि चूहा पारा पीके फेर हिज़ल जुल नहीण सकदा
यथा:- मन चूहा पिंगल भाइआ पी पारा हिर नाम
रजब चले ना चल सके रहिओ ठाम काठाम
अरथ: मन (मानो) चूहा है (जो) बाशना रूपी खुज़ड (विच भज़जिआ फिरदा है, इसळ)
किस अुपाव नाल फड़ीए? (अुतर:-) श्री गुरू (जी दे) चरणां दा प्रेम पारे
(वाणगूं भारा है इस चूहे ळ) पिला देईए जो टिक के थां सिर (बहि जावे)
श्री बाला संधुरु वाच ॥
दोहरा: पचहारे सभि ही जबै, किह बिधि जीत न पाइ
गोरख चिंतातुर भयो -होवति बाद अुपाइ१- ॥२॥
चौपई: बहुरो सरब सिज़ध मिलि आए
जे शकतिनि युति हुते पलाए२
गोरख जहिण बेदी कुलदीपा
बैसे सभि तहिण होइ समीपा ॥३॥
कितक देरि तूशन ही रहे
पुन बिचार गोरख बच कहे
मानहु मन मैण, बानी मोरी
सुनहु कान दे, कहोण बहोरी ॥४॥
सभि सिज़धन को अधिपत३ बनिये
सभि पर निज आइस को भनिये४
मुंदा पहिरो झोली लीजै
१बिअरथ जाणदे हन यतन
२जो शकतीआण वाले भज़ज गए सन (मुड़ आए)
३सामी
४हुकम करो