Sri Nanak Prakash
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इसकी सरबर१ को न जनीजै ४६॥
पंडत कहि सु पवायो चोला
तब कालू मुख ते बच बोला
रलमिल२ नाम सु तुरकन हिंदू
नहिण राखव इह नाम दिजिंदू! ॥४७॥
अवर३ नाम को सोधि धरीजै
रिदै शुभाशुभ४ भेव लखीजै॥
जो खज़त्री के कुल भल लागै
धरो नाम अस बिज़प्र सुभागै ॥४८॥
दोहरा: पूरब राखहिण५ नाम जे, पज़छ हिंदूअन जोइ
सो तुम रिदै विचारिकै, कहहु न तरकै कोइ ॥४९॥
चौपई: सुनो श्रोन६ दिज बचन अुचारा
यहि तुमरो सुत वड अवतारा
राम किशन अवतार जु हरि का
पूजति हिंदु, न मानहिण तुरका॥५०॥
इह सिसु को मानहिणगे दोअू
हिंदू तुरक सिख हुइ सभि कोअू
इस के चरन पोत७ की नाईण
पार परहिण परमारथ पाई ॥५१॥
संगति, करहिण तरहिण भव सागर
सकल जगत महिण होइ अुजागर
बहुत नरन को करहि अुधारा
नाम भगति दे दान अुदारा ॥५२॥
दोहरा: वं त्रिं भूम८ अकाश महिण,
होइ अधिक९ परताप
१बरोबर
२रलवाण मिलवाण
होर
४चंगा माड़ा
५अज़गे रखदे रहे हन
६कंनीण
७जहाज
८ग़िमीन
९बहुत