Sri Nanak Prakash
१३१५
२. शारदा मंगल अुलका गिर, इलाब्रत खंड, हिरन खंड, किंपुरख खंड,
हरवरख खंड ते कुरुखंड अुपदेश॥
१ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ३
{अुलका गिर} ॥२॥
{मरदाने दी श्रधा अते सिदक} ॥९..॥
{नौण खंड} ॥१३..॥
{पहिला इलाब्रत खंड} ॥१५..॥
{दूजा हिरन खंड} ॥३१..॥
{तीजा किंपुरख खंड} ॥४०..॥
{धरम चंद राजे दा सिदक} ॥४३-४६॥
{चौथा हरवरख खंड} ॥४८॥
{पंजवाण कुरखंड} ॥५५॥
दोहरा: चंडि प्रचंड अखंड बड, जग मंडंि खल खंड
भुज दंडन कोदंड धरि, सद अदंड बरबंड ॥१॥
चंडि=देखो पुरबारध अधाय १ अंग २, अधाय २ अंक १ ते अधाय १२
अंक १
प्रचंड=तेजसंस: प्रचंड॥ अखंड=जो खंडन ना हो सके, अटुज़ट
मंडंि=मंडन करन वाली, संवारन वाली, देखो पूरबारध अधाय १ अंक
२
खंड=खंडन करन वाली
भुज दंडन=भुजा दंड देण वालीआण भुजाण दो दंड देण विच समरज़थ हन
कोदंड=धनुख
कोदंडधरि=धनु धारी (अ) को=खोटे पुरख
दंड=सग़ा
धारी=धारन करन वाली, देण वाली
अदंड=अ दंड-जो आप दंड (सग़ा) हेठ कदे न आवे (अ) जो सग़ा दे
लाइक न होवे
बरबंड=बलबंड (बलवंत तोण बणिआण है) बलवान (अ) वर वंडं वाली
फेर तुक दा अरथ ऐअुण बणेगा कि:-कोदंडधर (=खोटे पुरश जो सग़ा दे लाइक हन
अुन्हां) ळ सग़ा देण वाली है ते अदंड (=जो सग़ा दे लाइक नहीण हन अुन्हां) ळ वर
वंडं वाली है
अरथ: हे चंडि! (तेरा) तेज बड़ा अटुज़ट है तूं (दुशटां दे विगाड़े) जगत ळ खलां
दा खंडन करके (मुड़) संवारन वाली हैण
(तेरीआण) बलवान (ते) धनुख धारी भुजाण (आप) सदा अदंड हन (पर दुशटां ळ)
सदा दंड देण (विच) समरज़थ हन
भाव: इस विच शारदा दे तेजमय रूप दा वरणन है अगले अधाय दे मंगल
विच अुस दे शांतमय, रूप दा कथन करके बंदना करनगे इस विचबंदना