Sri Nanak Prakash
२५८
करहि बंदगी पेश खुदाइ॥
जिअुण मैण तुम सोण कहोण सुनाइ ॥३७॥
श्री मुखवाक ॥
यक अरज गुफतम पेसि तो दर गोस कुन करतार ॥
हका कबीर करीम तू बेऐब परवदगार ॥१॥
दुनीआ मुकामे फानी तहकीक दिल दानी ॥
मम सर मूइ अजराईल गिरफतह दिल हेचि न दानी ॥१॥ रहाअु ॥
दोहरा: अरग़ कहोण* अज़ग्रज प्रभू! सुनीए दैकरि कान
हज़क१ कबीर२ करीम३ तूं, देहु नाम को दान ॥३८॥
चौपई: करहि बंदगी तन मन दीना
नाम सु जाचहि होइ अधीना
दीनबंधु तब करुना धारै
दे करि नाम दास निसतारै॥३९॥
सुनि श्री गुरु के बैन मुलाना
जिन ते मिटति बिकट४ अज़गाना
कालू हेत कहिन पुन लागो
धंन तुमारो मन अनुरागो ॥४०॥
जिअुण तुम रीति कहति यहि साची
हरि चरनन महिण मत रुचि राची
तज़दपि तुमरो सभि परवारू
भे दिलगीर जु है हितकारू ॥४१॥
इन को हेति करहु जिअुण हरखहिण
तुमरो मोह आन इन करखहि५
पिता पितानुज६ और जि गाती७
नहिण तिन को अस रीति सुहाती ॥४२॥
*पाठांत्र-करोण
१सज़च
२वज़डा
३मेहराण वाला
४कठन
पाठांत्र-अुर
५खिज़चदा है
६चाचा
७सनबंधी