Sri Nanak Prakash
१५२५
१६. शारदा मंगल कारूं प्रसंग॥
१५ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ१७
{कारूं प्रसंग} ॥२..॥
{नसीहत नामा} ॥५१..॥
दोहरा: मुकता पंकति सरसुती गुर जसु गुन पुरवाइ
पहिरेअुर दै लोक मैण शोभा है अधिकाइ ॥१॥
मुकता=मोती संस: मुका, मौकक॥
पंकति=लड़ी, श्रेणी, कतार संस पंकि॥
सरसुती=बाणी, सरसती दा वेरवा वेखो पूरबारध अधाय इक अंक दो
सारा सरसती ळ वाच, वाक, शारदा, गिरा, बाणी, आदि नावाण नाल याद करदे
हन, ऐअुण एह सारे पद इक अरथी हो गए हन, इस करके सरसुती दे एथे अरथ
बाणी हन
गुन=तागा
अरथ: गुरू जस (रूप) धागे (विच) बाणी (रूप) मोतीआण दीआण लड़ीआण परोके (जो
सिज़ख) हिरदे (विच) पहिन लवे, (अुस दी) शोभा दो लोकाण विच बहुत
होवेगी
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: सुनीए श्री अंगद सुख कारन!
गमने आगे नरक निवारन
रूम विलाइत जहां महानां
पातिशाह कारूं तिह थाना ॥२॥ {कारूं प्रसंग}
तहां जाइ देखो पुरि भारी
महां रंक बसिहैण नर नारी
करत करति सभि दिवस बितावति
दरब न पास सदा दुख पावति ॥३॥
संत अतिथि की सेव न करिई
भूप प्रजा एकै अनुहरिई१
श्री परमेशुर नाम न लेईणदुहूं लोक दुख पावहिण तेई ॥४॥
तिन को सुख देने के हेता
पुरि प्रविशे बेदी कुलकेता
कारूं केरि दुरग२ जिह भारी
१इको जिहे
२किल्हा