Sri Nanak Prakash
२७३
तूशन भए तबहि सुख सदना
दिज दंभन को कीन निकदना
तिह छिन हरखो अुर परवारू
सभि के मन ते मिटा खभारू१ ॥४४॥
बचन सुननि की दिज हरदालू
वड लालस बोलो तिहकालू
अूच करम ते गिरा अुबाची२
रिदे शुज़ध को इह सभि साची ॥४५॥
जो जग कान सिंखला३ संगा
वरण धरम करि सकैण न भंगा
पुन निज मति को जज़गुपवीता
अुचरहु बचन जु होति पुनीता ॥४६॥
सुनहिण सभिहि दिज बाहज गाती
जो अतूट रहि सदा संगाती४
सुनति श्रोन अरबिंद५ बिलोचन६
बोले बानी बंध बिमोचन७ ॥४७॥
श्री मुखवाक ॥
म १ ॥नाइ मंनिऐ पति अूपजै सालाही सचु सूतु ॥
दरगह अंदरि पाईऐ तगु न तूटसि पूत ॥३॥
चौपई: जिन अस पायो जज़गुपवीता
सो सभि थान विखै निरभीता
जहां जाइ तहिण आदर पावा
सभि शोभा संयुत जसु छावा ॥४८॥
भगन न होइ८ संग रहि सोअू
भाग जगे ते पहिरहि कोअू॥
१खोभ
२कही
३बेड़ी, संगल, बंधन
४संग
५कवल अज़खां वाले
६कवल अज़खां वाले
७बंधनां दे नाश करता
८तुज़टदा नहीण