Sri Nanak Prakash
१५४०
१७. शारदा मंगल हबश विलाइत, चोला, रामचंद्र दी कथा॥
१६ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ१८
{हबश विलाइत} ॥२॥{लाजवरद} ॥२, ३४॥
{अरशी खिलका} ॥५..॥
{रामचंद्र दी कथा} ॥३९..॥
दोहरा: जगमगाति जग तारनी, जगत बिखे जिह जोति
जैय जालपा जै करी, कीजै सुमति अुदोति* ॥१॥
जगमगाति=जगमग कर रही है (अ) पाठांत्र ऐअुण भी है-
जगत मात जग तारनी=तूं जगत दी माता ते जग तारनी हैण, परंतू अुदोत
विच जो संभावना है, अुह दज़सदी है कि बाणी दे जगमग करन वाले गुण दी प्रशंशा
वधीक दरुसत है फेर-बिखे-पद किसे क्रिया पद दी लोड़ रखदा है, जो-
जगमगाति-तां है, पर जगत मात क्रिआ पद नहीण है
जैय=बिजै मान, जो आप जिज़त सके या जिज़त लवे
भाव: विदा मंडलां विच बिजै दाती संस, जयय॥
जालपा=हंस जिस दा बाहन होवे संस: जालपाद=हंस॥
जै करी=जै कर देण वाली, बिजै दाती
अरथ: जगत विच जिस दी जोत जगमग कर रही है (ते आपणी सुमती प्रकाश नाल
जो) जगत ळ (अविदा अंधकार तोण) तार रही है, जो हंस (अुज़जल कवि
मनां) दी सवारी करदी है, (ते आप) बिजैमान (है अर होरनां ळ) जै देणदी
है, (मेरी बी) स्रेशट बुज़धी ळ जगा दिओ
श्रीबाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद सुनीए सुख दानी!
आगे गमन कीन गुन खानी
हबश* विलाइत गए दयाला {हबश विलाइत}
पातिशाह तहिण दुशट बिसाला ॥२॥ {लाजवरद}
हिंदू नर तिस देश जि आवै
गहै ताहिण जमधाम पठावै
तिस की धूम प्रगट भई सारे
जो हिंदू पावहि, तिह मारे ॥३॥
पहुंचे सतिगुर नाम जपावन
टेढे चलति सूध मग पावन
*पा:-जै जै सुमति अदोत
*पा:-सरफ
पा:-सिधावै