Sri Nanak Prakash
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राजति जिव पांतन अरबिंदा२ ॥१४॥
किधोण चंद्रमा मंडल मांही
किनका श्रवत३ पियूख४ सुहाही॥
शेखनाग लखि शैन मिलापी५{सरप छाइआ}
-आतप अुथपिअुण६- इअुण अुर थापी७ ॥१५॥
शेत वरन गो दुगध८ नवीना९
धरि दूसर१० तन आव प्रबीना
सुंदर सुख मंदर को देखी
कीनि बंदना प्रीति बिशेखी ॥१६॥
बहुरो तीन प्रदछना दीनी
सीस दिशा निज इसथिति कीनी
हेत छाअुण के११ फन बिसथारा१२
अति अुज़जल जिव सुरसरि धारा१३ ॥१७॥
अूचो फन अस शोभा पाई
किधोण१४ सिंधु सी१५ सैन१६ बनाई
सभि शरीर पर जिसकी छाया
जड़ सा१७ थिर, नहिण नैक१ डुलाया ॥१८॥
१मुड़्हके दीआण बूंदां मानोण मकरंद रस दीआण बूंदां हन, जो कमल पज़तिआण ते (जल बूंदां) वाणू फब
रहीआण हन (अ) जल मानोण मकरंद रस है
*पाठांत्र-सेदं ब्रिंद बूंद मकरंदा
२कवल दे पज़त्राण अुपर
३किंके चो रहे हैन
४अंम्रित दे
५सेजा दे मेली लखके
६मैण धुज़प हटावाण
७मिथी
८गां दे दुज़ध वरगा
९नवाण
१०दूजा, होर
११छां करन वासते१२फन खिलारिआ
१३गंगा दी धार वरगा अुज़जल
१४मानोण
१५समुंदर वरगी
१६सेजा
१७जड़्ह वरगा