Sri Nanak Prakash
१५५८
१८. श्री गुर गोबिंद सिंघ जी मंगल लका प्रसंग, बिभीखन, हनूमान
मिलाप॥
१७ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध- ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ१९
{जनक दा स्रापिआ मगरमज़छ} ॥५॥
{लका प्रसंग} ॥२५..॥
{देहहंता दा भूतना} ॥३१..॥
{बिभीखन मिलाप} ॥४०..॥
{हनूमान मिलाप} ॥७१..॥
नराज छंद: गुरू गुबिंद सिंघ जी निखंग चांप धारन
अनद दा मुकंद ब्रिंद बैरन बिदारन
रिदे सदीव दास के निवास हंत त्रास को
पदारबिंद मंजुल नमो नमो अनाश को ॥१॥
निखंग=भज़था, तरकश संस: निंग॥
चाप=धनुश कमान संस: चाप॥
बिदारन=नाश करन वाले
हंत=मारन वाले, दूर करन वाले
हंत त्रास को=डर ळ मार देण वाले, निरभै करन वाले
पदारबिंद=पद अरबिंद=चरण कमल
मंजुल=अुज़जल सुंदर, मन पिआरा, संस:.मंजुल॥
अनास=सुखी, अराम, सुखदाई (अ) अ नाश=ना नाश होण वाले, सदा
जागती जोत (इ) निरयतन संस: अन आयास-अनायास॥ तुक दा दूसरा अरथ
ऐअुण लगेगा कि आप दे मन पिआरे चरनां कमलां पर दास दी निरयतन नमसकार
होवे, मुराद है जो अंदरोण आपे फुज़ट के निकले, प्रेम मई, (श) अनासमंजुल=जो
सुते सिध सुंदर हन कुदरती तौर ते खूबसूरत
अरथ: हे कमान ते भज़था धारन वाले (श्री) गुरू गोबिंद सिंघ जी, अनद अर मुकती
दे दाते, (तुसीण जो सरीरक ते मानसक) वैरीआण दे समूह ळ नाश कर देण
वाले (अते ऐअुण सरब प्रकार दे) भै ळ दूर करन वाले हो (अते) सदा दासां
दे हिरदे (विच) निवास (रखदे हो) आपदे सुख दाते ते मन पिआरे चरणां
कमलां पर (मेरी) नसमकार होवे! नमसकार होवे!
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद! सुनि परम सुजाना
बोलो बहुर बैन मरदाना
रघुबर सेतु जु बाणधन कीना
तिह अूपर को चलहु प्रबीना! ॥२॥