Sri Nanak Prakash
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यां ते भलो रहति मैण यो ही१ ॥२६॥
इक सपूत बहु दरब कमावहिण२
तूं अस भा जो बाद३ गवावहिण
जाइ नगर पुनदिजबर सदना४
अुपालभ५ के कहि बच बदना६ ॥२७॥
बेद पुराण सभे तुम झूठे
सूधे कहअु होति हैण पूठे
किधोण७ न तुम ते जात बिचारे
किधोण४ हरख हित पाज अुचारे८* ॥२८॥
भली छतर की दीनि वडाई
पूरब ऐशरय जास घटाई
अब बीजो सभि खेत निपातू९
पसु चरवाइ, न कीनी त्रातू१० ॥२९॥
जब को जनमो इन सुध११ लीनी
धन खज़टन की क्रिज़त न कीनी
खोयो संचो पूरब मेरो१२
यां ते बिफल१३ भयो बच तेरो ॥३०॥
बोलो बचन बिज़प्र१४ परबीना
जिह मन श्री नानक जस लीना
सुनि कालू! तू मूलहु भूला१
१ऐवेण ही, सुतहीन
२इक ऐसे पुज़त्र हुंदे हन जो बड़ा धन कमाअुणदे हन
३बिरथा
४ब्राहमण दे घर
५अुलांभे दे
६मुख तोण
७जाण
८झूठ बोल दिंदे हो
*हमारे-पाठांत्र है
९नाश कर दिज़ता
१०रखवाली ना कीती
११होश पकड़ी
१२पिछला मेरा कज़ठा कीता होया
१३बिरथा
१४ब्राहमण