Sri Nanak Prakash
३२८
.१४. गुर नानक मंगल खरा सौदा करन जाणा॥
{हेमंत-हिमकर रुत द्रिशटांत} ॥७..॥
{संतां दा आश्रम तप द्रिश} ॥४३..॥
{संतरेण} ॥४८, ६८॥
{संतां हित ख्रीदी सामग्री दी वेरवा} ॥७५..॥
दोहरा: श्री नानक सुख सिंधु को, हाथ जोरि परनाम
जिस करुना ते वड अघी पावहिण गति बिसराम ॥१॥
सिंधु=समुंदर संस: सिंधु॥ परनाम=नमसकार
अघी=पापी, संस: अघ=पाप॥ गति=मुकती
बिसराम=आराम, टिकाअु, संस: विश्राम॥
अरथ: सुखां दे समुंदर श्री (गुरू)नानक (देव जी) ळ मेरी हज़थ जोड़ के नमसकार
है, जिन्हां दी क्रिपा नाल वडे पापी (जीअुणदिआण आतम) आराम (पाअुणदे हन
अते मरके) मुकती प्रापत करदे हन
भाव: हुण फेर दसां सतिगुराण दी आराधना रूप नमसकारतामिक मंगल करदे हन
पहिलां श्री गुरू नानक देव जी ळ नमसकार करदे हन, जिन्हां दी मेहर नाल
पापीआण दे पाप खीं हो जाणदे हन, जिस दा फल इह हुंदा है कि अुह लोक
सुखी परलोक सुहेले हो जाणदे हन
सतिगुर मिहर दा भरोसा ते फल॥
चौपई: तिह करुना की हमरे टेकू
सुमति न अुकति न मुझ अुर एकू
रुचि अूची मन की मति कीरा
मिलै न कौडी चाहअुण हीरा ॥२॥
जिअुण जिअुण मति दे मुझहि बुलाईण
तिअुण तिअुण लिखोण कथा सुखदाई
शकति नहीण इक पद रचनां की
ग्रंथ करन इह करुना तां की ॥३॥
टेकू=टेक, आसरा, ओट सुमति=स्रेशट बुज़धी
अुकति=जुगत, दलील, बादलील लिखं दी जाच संस: अुकि=बाणी, बचन॥
कीरा=कंगाल; होछी
अरथ: (अुपर कही) अुस मेहर दा साळ आसरा है, (अुण आपणे आप विच) मेरे
दिल विच ना स्रेशट बुज़धी है ना बादलीललिखं दी जाच इक (गज़ल भी
नहीण) मन दी (आपणी) मति तां होछी है ते रुची (बड़ी) अुज़ची है, (जिवेण)
मंग तां रिहा हां हीरा, पर (हज़क) प्रापत कअुडी (दा) भी नहीण
प्रशन: फिर लिख किवेण, रहे हो?