Sri Nanak Prakash

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प्रीत चिंत महिण सानी१ बानी
बोलो रीति अनीति पछानी ॥२१॥
सुत नानक! तूं एक हमारे
नहिण दूसर जो काज संभारे
तुम नै तजि दीनो अस रीतू
जिअुण विराग दिढ२ होति अतीतू३ ॥२२॥
कहहु ग्रसत सिअुण किअुण बनि आवै
निस बासुर बिन काम बितावै
मुझ जीवति जे लेति संभारी
हौण जानति सुत है सुखकारी ॥२३॥
तुझ जनमति मन भा भरवासा
नानक करि है नाम प्रकाशा
दरब कमावन मैण जस मेरो
जानहि सभि पुरि मांहि४ घनेरो ॥२४॥
जिम राणका५ को इंद६ निहारी७
देख सराहहिण सभि नर नारी
राहु८ सरस तूं भा घर मांही
सभि बिधि मंद करति भा तांही ॥२५॥
एक न मति मन बनज करन की
बहुर न खज़त्री रीति बरन की
हारो अनिक बिधिन मति देतू९
कबहि कमाइ न लाइ निकेतू१० ॥२६॥
जनक बचन तूशनि१ करिसुनीआ


१मिली होई
२पज़का
३फकीर ळ
पाठांत्र-बिन कार
४सारे शहिर विच जाणदे हन
५पूरनमाशी दे
६चंद्रमा ळ
७देखदे हन
८राहू (जो चंद ळ ग्रहन लांदा है)
९सिखा देणदा
१०घर

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