Sri Nanak Prakash

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तिव राखी छपाइ कला गुनखानी ॥२५॥
सोरठा: लखि न सकहिण अनजान
बकहिण सि अस१ मिल परसपर२
काज कठन जग जानि
बिन मति होइ न आवई ॥२६॥
श्री बेदी कुलचंद, रहति समान सुभाइ मैण
कमलन से मतिमंद३, कैसे सकहिण पछान सो ॥२७॥
धरमधुरीन४ अगाध, अस बिधि समां बितावईण
चलि करि आयो साध, एक दिवस तलवंडिका* ॥२८॥
रीति तन संत की अतीत बैठो आनि इक
कबिज़त:
नगर वहिर५ बर६ आसन डसाइ के७
तांही समेण सहिज सुभाइ गए नानक जी
बैसे करतार करतार तां८ सुनाइ के
कंचन९ की मुंद्रिका१० सुहाइ छुज़द्र आणगुरी मैण११
लोटा हाथ लीए अुपकारी जे सुभाइ के
बूझति अतीत कौन नाम तौ बरन रीति
कहो परतीत निज चीत की जनाइकै ॥२९॥
**'नानक है नाम निरंकारी तन बेख जान


१ओह इस तर्हां कहिंदे हन
२आपो विच
३कमल फुल वरगेदुरबुज़धी लोक (कमल चंद वलोण मूंह मीट लैणदा है)
४धरम धारन वाले
*इक नुसखे विच पाठ-तिलवंडी-सारे ग्रंथ विच है, होरनां नुसखिआण विच-तलवंडी-है
५बाहर
६चंगा
पा:-बाहरु वार
७विछा के
पा:-तेही
८अुसळ
९सोने दी
१०मुंदरी
११छोटी अुणगली विच
**इथे दो कलमी नुसखिआण विच पाठ दा बी फरक है ते कबिज़त बी दो हन यथा:-'नानक है नाम,
निरंकारी तनुबेखि जान, खज़त्री है सु जाति, गोत बेदी मम जानहिो' कहै संत वाकु तुम आप
निरंकारी भए, अुज़तर बताइ हम कौं ते प्रमान हो? माया मोह ग्रसे हो, कुटंब नेह फसे हो,
बिसैन बीच रसे हो, बखान बैन आन हो सदन बसे हो पंक लोभ मैण धसे हो कर पहिर लसे हो हेम

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