Sri Nanak Prakash
१६३७
२४. शारदा मंगल पांडवाण दा प्रसंग॥
२३ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ२५
{पांडवाण दा प्रसंग} ॥२..॥
{क्रीचक प्रसंग} ॥३३.. ॥॥ ॥२५॥
दोहरा: महिखासुर मद मरदनी, महां मोद दा शज़क्र
जगदंबा जै जै करी, बज़क्र धरे कर चज़क्र ॥१॥
मोद=खुशी देण वाली शज़क्र=इंद्र संस: शज़क्र:॥
जगदंबा=जगत दी मां संस: जगत अंबा॥ देश दे शज़त्रआण ळ नाश करन
करकेजिस विअकती ळ देवी किहा, अुस ळ जगदंबा बी आखिआ
बज़क्र=टेढा, जिवेण चलाअुण वेले चज़क्र फड़ीदा है
अरथ: महिखासुर (नामे दैणत) दा अहंकार मल सिज़टं वाली (ते ऐअुण) इंद्र ळ
बहुत खुशी देण वाली जगदंबा हज़थ विच टेढा चज़क्र धारण करके (वैरीआण ते)
फतह पाअुण वाली (तेरी) जै है!
भाव: मेरे विघनां दा भी नाश करो
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: अब सुन पांडव केर कहानी {पांडवाण दा प्रसंग}
जिन ढिग रहति क्रिशन गुनखानी
सरब दिशा जीती इक बारी
राजसुअ मख१ कीनौ भारी ॥२॥
अमित पदारथ घर महिण आए
सभि दिश के न्रिप पाइ२ लगाए
दुरयोधन के ढिग इक काला
गए तहां जहिण सभा बिसाला ॥३॥
बैठि जूप३ तिन संगि मचावा४
प्रिथम गलाह५ दरब को लावा
बहुर मतंग, तुरंग हराए६
संदन७ भूखन, ग्राम लगाए८ ॥४॥
१राजसू यज़ग इक यज़ग दा नाम हैण
२चरनीण
३जूआ
४खेडिआ
५दाअु
६हारे
७रथ
८दाअु अुतेलाए