Sri Nanak Prakash
१६५४
२५. गानी मंगल दुखी शाह कोहड़ी फकीर निसतारन॥
२४ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ२६
{जनमेजे दी कथा} ॥२..॥
{अगले प्रसंग संखेप} ॥४२..॥
{कोहड़ी फकीर निसतारा} ॥६३ ॥॥ ॥२६॥
दोहरा: ब्रहम गान जिन के रिदै, जानो सहिज सरूप
तिन के पद पर बंदना, अुचरोण कथा अनूप ॥१॥
सहिज=असली हालत ओह दशा जो कुदरतन सी, जिस विच होर कुछ नहीण
रलिआ, या कोई बदली नहीण होईसहिज सरूप=असली हालत सरूप दी सरूप दी ओह हालत जो मूल तोण अुस
दी है सहिज सरूप दा जाणना=आपे दी लखता
अरथ: (जिन्हां ने आपणे) सहिज सरूप ळ जाण लिआ है (ते) ब्रहम दा गिआन
जिन्हां दे हिरदे (विच प्रकाशिआ है) अुन्हां दे चरणां ते मज़था टेक के अनूपम
कथा (अज़गोण दी) अुचारदा हां
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद! सुनि अगल प्रसंगा
गुरू कहिन लगि१ पुन तिह संगा*
जनमेजे की सुनहु कहानी {जनमेजे दी कथा}
जिअुण दुख पायो तिह सभि जानी२ ॥२॥
बेद बास इक बासुर मांही
बैठो हुतो न्रिपति के पाही
अपने पितरन की दुख गाथा
बूझन लगा तांहि के साथा ॥३॥
-धरमज३ जबहि जूप४ को खेला
जिह ते बीतो काल दुहेला५
किनहूं बरज६ न तिह को कीनो
गहो कुकरम जु धरम प्रबीनो ॥४॥
शुभ सुभाइ सतिबादी सोई
१कहिं लगे
*हुण कवि जी फेर कथा ळ गुरू जी तोण कहावंलगे हन
२सभ कुछ जाणदिआण होइआण (अ) तिसळ सारे जाणदे हन (ॲ) अुह सारी तूं जाण लै
३युधिशटर ने
४जूए
५दुख वाला
६रोकंा