Sri Nanak Prakash

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नहिण खोवहि धन, नित चाहा ॥३४॥
बुलवावोण१ होइ सगाई
चित चिंता करहु न काई
तिय मोह२ तबहि हो जाई
नहिण खोवहि दरब अजाईण ॥३५॥सुनि बाला तहां सिधाया३
जहिण नानक हाट सुहाया
तब कालू कोइक४ काला५
बीतायो तनिया शाला६ ॥३६॥
चलिने की कीनी तारी
समझावति बहु परकारी
सुत होइ सगाई तेरी
अब तूरन नहिण कछु देरी ॥३७॥
करि इकठो खरच सगाई
तजि आगल७ रीति बिजाई८
मिलि तनजा९ तनुजापति को१०
बहु चलन समैण करि हित को ॥३८॥
मिलि नानक सोण पुन बाला
बच हित के कहि करि चाला
निज कालू भौन सिधाया
पुन नानक कार चलाया ॥३९॥
है रीति पूरबलि११ जैसी*


१तुसाळ सज़दांगा, जदोण
२इसत्री दा मोह
३चला गिआ
४कुछ
५समां
६पुज़त्री दे घर
७पिछली
८अजोग रीती, बेजा
९पुज़त्री
१०जुवाई, भाई जैराम जी ळ
११पिछली
*पाठांत्र-है रीती पूरब जैसी

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