Sri Nanak Prakash
१६६७
२६. संतमंगल संतां दा अुधार एमनावाद आगमन॥
२५ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ२७
{संतां नाल गिआन चरचा} ॥५..॥
{ब्रहमा, बिशन अते शिव दी अुमर} ॥१०.. ॥॥ ॥२७॥
{संतां समेत एमनावाद पहुंचे} ॥७४॥
दोहरा: नाम बिखै जिनि लिव लगी, हअुणमै सरब नसाइ
तिन संतन बंदोण चरन, अुचरोण कथा बनाइ ॥१॥
{बनाइ=बनाके, संवार के, सुहणी तर्हां नाल }
अरथ: जिन्हां संतां दी सारी हअुमै दूर होई है (अते) नाम विच लिव लगी है अुन्हां
दे चरनां अुते मज़था टेक के (अगोण) कथा सुहणी तर्हां अुचारदा हां
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: कहि बाला श्री अंगद! सुनीए
रुचिर कथा गुन गन युत१ गुनीए
मारग चले जाहिण गतिदाई
गोबिंद लोक२ मिले कछु आई ॥२॥
सभिनि पदन पर बंदन ठानी
बैठि गए अुचरी मुख बानी
रावरि सुजसु सुना सभि थाईण
कीरति पसर रही अधिकाई ॥३॥
चहित मिलाप बितो कितकाला
अकसमात्र३ अब मिले क्रिपाला
करन सणभाखं४ रावरसाथा
बूझन चहैण प्रभू की गाथा ॥४॥
जे आइसु तुम देहु गुसाईण!
करहिण अपनो प्रशन बनाई {संतां नाल गिआन चरचा}
सुनि करि श्री गुर गिरा अुचारी
तुम बूझन पर हअुण बलिहारी ॥५॥
जाण ते भयो प्रेम अभिरामू
हरि चरचा भगतन को कामू
इस बिधि सफली घड़ी बिहावहि१
१सहित
२संत लोक
३ अचानक
४प्रशन अुज़तर