Sri Nanak Prakash

Displaying Page 396 of 832 from Volume 2

१६९२

२८. सतिगुर मंगल गुरू जी ने कैदी छुडाए बाबर तोण॥
२७ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ२९
{बाले मरदाने समेत ग्रिफतार} ॥४॥{खुरासान खसमाना कीआ} ॥१०..॥
{जेल्ह विज़च चज़की पीसं दा प्रसंग} ॥२२..॥
{बाबर} ॥२४..॥
{बाबर ळ बचन} ॥६०॥
{बाबर तोण कैदी छुडाए} ॥६६॥
दोहरा: द्रिड़ हिरदे अज़गान जो, बहु बिधि जगत बनाअु
गान भए ते नशट है; चहिति जि, सतिगुर धाअु ॥१॥
अरथ: हिरदे विच द्रिड़ अज़गान (दे कारन) जो जगत दी बहुत प्रकार दी बनावट
(बणी दिस रही है अुह) गान होण ते नाश हुंदी है, (हे मन) जे (तूं इस
गान दी प्रापती) चाहुंदा हैण तां सतिगुरू जी दी आराधना कर
भाव: सतिगुरू जी धिआअुण नाल गिआन दी प्रापती हुंदी है
स्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद! सुनि कथा अगारे
सैन देखि से संत सिधारे१
श्री गुर बैसि रहे तिह थाना
इक मैण संग दुतिय मरदाना ॥२॥
तिह छिन एक मुगल चलि आयो
हमहिण देखि निज दास बुलायो
तिह सोण कहिन लगो बच ऐसे
इह मानव तीनोण जे बैसे ॥३॥
सिर बोझे धरि२ करहु न देरे
गहि ले चलिये इन को डोरे {बाले मरदाने समेत ग्रिफतार}
तिन अुठाइ३करि लीन अगारी
धरे सीस पर भार जि भारी ॥४॥
मरदाने को असु४ पकरावा
मैण इक बोझा सीस अुठावा
श्री प्रभु को सिर धरने लागे
महिमा लखहिण न मूड़ कुभागे ॥५॥

१ओह संत (तां) चले गए
२रखो
३अुठाके (साळ)
४घोड़ा

Displaying Page 396 of 832 from Volume 2