Sri Nanak Prakash
१७०७
२९. चरन कमल मंगल, साहुरे नगर फेरा, अजिज़ता अुधार॥
२८ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ३०
{मरदाने दा शंका} ॥२॥
{साहुरे नगर फेरा} ॥१९..॥
{अजिज़ता} ॥२०॥
{अजिज़ता अुधार} ॥३९..॥
{मूले अते चंदोरानी दे कठोर बचन} ॥६९.. ॥॥ ॥३०॥
{स्री सुलखंी जी दी बेनती} ॥८५..॥
दोहरा: सरब बिखै सिंमल ब्रिज़ख*, शुक मन तजि अज़गान
सतिगुर चरन रसाल को, सेवि सदा सुख मानि ॥१॥
बिखै=विशे, शरीरक भोग संस: विय॥ शुक=तोता
अज़गान=भुलेवा अगान शुक=भुज़ले होए तोते
सूचना: तोते दे भुलेवे पर गुरवाक है:-
सिंमल रुखु सरीरु मै मैजन देखि भूलनि सूही म १॥रसाल=अंब (अ) रसां दा घर (ॲ) कज़टहल (स) अंगुर (ह) गंनां
अरथ: सारे विशे सिंमल दे ब्रिज़छ (वाणूं निकंमे) हन, ते तोते रूपी भुज़ले होए मन
(इन्हां ळ) तिआग* ते सतिगुर जी दे चरणां ळ जो अंब (ब्रिज़छ तुल हन) सेव
(ते ऐअुण) सदैवी सुख मां
भाव: सिंमल बाबत गुरवाक है:-
सिंमल रुखु सराइरा अति दीरघ अति मुचु ॥
जिस विच अुस दे फल फिज़के फुल बकबके दज़से हन ते तोतिआण दी भुज़ल ते
चज़खं ते निरासता पज़ले पैंी दज़सी है जो फुल टुक टुक सज़टी जाणदा है, ओहो द्रिशटांत
लै के मन ळ कहिणदे हन कि सतिगुराण दे चरणां ळ सेव जो रसां दा घर हन, अथवा
जो अंब या गंने सरीखे मिज़ठे हन ते विशेश रस ताग जो सिंमल हन
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: बैठे हुते प्रभू गुन खानी
मरदाना तब बोलो बानी {मरदाने दा शंका}
आप पुरा पुरि१ महिण जब आए
संत संग बैठे इह थाएण ॥२॥
हित अहार के जाचन गवने
फिरे पठानन के तब भवने
देखि छुधातुर किनहणु न दीनो
बहुरो मिलो दुखद मति हीनो१ ॥३॥*पा:-बिरख
*तुक दा दूजा अरथ-हे तोते मन सिंमल (ळ रसाल समझं दा) अगान दूर कर
१पहिले शहिर (एमनाबाद) विच