Sri Nanak Prakash
१७२१
३०. चरन मंगल करतार पुर बसना, ब्रहमण दी रसोई दी सुच॥
२९ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ३१
{मूला चंदोरानी प्रलोक गमन} ॥१०॥{करतारपुर बसना} ॥६१॥
{करमकाणडी ब्राहमण दी सुज़च} ॥६७..॥
{क्रोड़ीआ खत्री} ॥२०..॥
दोहरा: बिशियन ते बैरागि है, करि गुर पग अनुराग
लिव लगाइ जागति रहहु, सिमर नाम वडभाग ॥१॥
अरथ: (हे मन!) विशिआण तोण वैरागी हो के गुरू जी दे चरणां (नाल) प्रेम कर, (ते
वाहिगुरू जी दा) नाम सिमर, (सिमरण विच) लिव लाई रज़खके (अंतर
मुख) जागदा रहु (तां तूंहोण) वडभागी हैण
भाव: पिज़छे अभागी मन दा लछण किहा साने जो तोते वाणू भुलेवे विच आ के
विशिआण दे भैड़े नतीजे पाके निशफलता ळ प्रापत हुंदा है, इथे अुसे मन ळ
वडभागी होण दी जुगति दज़सदे हन ते रसाल ब्रिज़छ दा पता देणदे हन जो ऐअुण
है:-विशिआण तोण वैराग, गुर चरनां दा प्रेम, नाम दा सिमरण, लिव ते
आतम-जाग्रत
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: कितिक दिवस जब रहित बिताए
दिन प्रति महिमा हुइ अधिकाए
अवलोकत समझो तब मूला
-भा श्री नानक जस अनकूला- ॥२॥
आयो अपर तजी सभि गिनती
हाथ जोरि कै कीनी बिनती
तुम तो महांपुरख हो पूरे
हम नहिण चलति१ लखे जो रूरे ॥३॥
निस दिन निदति रहे बिसाला
पची भए२ नित जगत जणजाला
अवगुन करे बशीए मोही
अहै हमारी लजा तोही ॥४॥
दीन भए को देखि दयाला
कहे बचन करि क्रिपा बिसाला
सिमरहु सज़तिनाम गतिदाई
१चरिज़त्र
२खचत होए होए रहे