Sri Nanak Prakash

Displaying Page 474 of 1267 from Volume 1

५०३

तब पुरि पाई सागर सोभा१
अुमगे नर जनु बढो छोभा२ ॥३८॥
करि शिंगार को नागर नारी
कंचन भूखन रुचिर सवारी
परिपा३ चली प्रकाश छबीला
सोहति जोण बड़वानल कीला४ ॥३९॥
कीरति राणका५ बनी सुहाती
अुडगन६ भूखन सहित बराती७
बचन अमी८ अहिलाद मुकंदा
अस श्री नानक पूरन चंदा ॥४०॥
तिसहि बिलोकनहेत अुमंगा
आवति नर जनु अुठे तरंगा
नगर कोट९ बेला१० तजि११ तूरन
फैलो जल जिअुण वहिर संपूरन ॥४१॥
देखि देख परमोद* न थोरा
सभिहिण बिलोचन कीनि चकोरा
चिरंकाल बिछरे सुख रासा१


तलवंडी नगरी ळ समुंदर दे अलकार विच कवी जी दिखाअुणदे हन नगरी है समुंदर, शहिर
दीआण गलीआण विज़च गहिंे कज़पड़े पा के जो इसत्रीआण दीआण टोलीआण तुरीआण हन इह (बड़वानल)
समुंदर विच होण वाली चमकदी अज़ग है, मनुखां दी वसोण पांी है, शहिर दी फसील किनारे हन,
इहनां ळ लघके लोक जो दरशन लई बाहर निकले हन इह मानो पांी दा जुवार भाटा है,
पुंनां ळ जिवेण समुंदर चंद ळ वेख के अुज़छलदा है पूरनमाशी दा चंद्रमा सतिगुरू जी हन, जिन्हां
दे विच वचनां रूपी अंम्रित है जाणी अकाश दे तारिआण वाणग हन, गुरू महाराज दी कीरती
चांदनी है, वेखं वालिआण दीआण अज़खां चकोर हन जो दरशन करके शांती अर अनद लै रहे हन
१शहिर ने पाई समुंदर दी शोभा
२चड़्हाअु
३गलीआण विच
४समुंदरी अज़ग दी लाट
५चांदनी
६तारे
७जाी
८अंम्रित
९शहिर दी फसील१०किनारे हन
११छज़ड के
*पा:-सु प्रमोद

Displaying Page 474 of 1267 from Volume 1