Sri Nanak Prakash

Displaying Page 474 of 832 from Volume 2

१७७०

३४. गुरमुख तोण सुणके नाम जपण दा फल बदाद, दसतगीर पीर-अुधार॥
३३ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ३५
{पीर दसतगीर} ॥३..॥
दोहरा: सरब रसन ते रस भला,
साद लेइ जो कोइ॥
श्री गुरमुख ते नाम सुनि,
जपहि सदा सुख होइ ॥१॥
रसन ते=रसां तोण साद=सुआद
गुरमुख=अुह गुर सिज़ख जो आप नाम जपदा ते होरनां ळ जपाअुणदा है ते रग़ा
पुर खड़ो गिआ है ओह सतिकार योग गुरमुख है (अ) गुरू जी दे मुख तोण
अरथ: जे किसे ळ सुआद लैं (दा चसका होवे तां) सारिआण रसां तोण भला रस (इह
है:-कि) श्री गुर मुख तोण (वाहिगुरू जी दा) नाम सुण के सदा जपे (तां
सुआद दे नाल) सुख (बी) प्रापत हुंदा है
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद सुनि कथा रसाला१
जिस महिण मारग मुकति बिसाला
दीन बंधु कीनो प्रसथाना
जहां देश बदाद महाना* ॥२॥{बगदाद}
दसतगीर तहिण पीर रहेही {पीर दसतगीर}
सभि नर तिह की सेव करेहीण
आइसु बिखै रहिति दिन राती
तिस महिण अग़मत बड बज़खाती ॥३॥
जस अुपदेश देति तिस देशा
तस करिही सभि सहित नरेशा
जाण के बहुत मुरीद अगारी
सेवहिण सद आइसु अनुसारी ॥४॥
तिह को मान हरन२ गुन खांनी
प्रापत भए जहां रजधानी
पुरि ते वहिर रुचिर जल हेरा
बैठि गए तहिण करिकै डेरा ॥५॥


१सुंदर, रसीली
*देखो इसे अधाय दे अंक ६८ दी हेठली टूक
२हंकार नाश करन लई

Displaying Page 474 of 832 from Volume 2