Sri Nanak Prakash

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तिह होरहि१, सो होति कुभागा ॥३८॥
धंन भाग तुम करे बिधाता
जिन को ऐसो बनो जमाता२
अनिक कुलन को करहि अुधारा
शांति रूप, किय नाश विकारा ॥३९॥
जाण के सरस३ अुदार न कोअू
पसरो सुजस सरब दुख खोअू
कबहि न घाटा लेखे आवा
अनिक वार बाधो४ बहु पावा ॥४०॥
पुनि तुम भाखति५ -सुता हमारी
सरब बात* ते रहिति दुखारी-
कहिये कौन पदारथ हीनी?
जाणते दुखी सुता निज चीनी६ ॥४१॥
सरब वसतु भ्राता ने दीनी
खरचन खान अतोटहि कीनीनाना असन बसन बहु दीने
सुंदर भूखन भूखति कीने७ ॥४२॥
एक फिकर को ग़िकर८ न कोअू
चाहि जु होइ, पुचावहि सोअू
बिनां दोख तुम करहु खुआरा
तो का चलिहै हमरो चारा ॥४३॥
सुनि मासी! असमंजस गाथा९
हम बोलहिण जे तुमरे साथा
अस बच सुनि करि चंदोरानी


१अुस ळ जो रोके
२जवाई
३बरज़बर
४आखदी हैण
५आखदी हैण
*पा:-भांति
६जाणी है
७पहिराए
८इक गल दा बी कोई फिकर नहीण
९बे-मुनासबी दी गल है

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