Sri Nanak Prakash

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१८०३

३६. गुरपग सिमरन, कंधार, यारवली, खज़त्री, शाह शरफ, मानचंद
निसतारा॥
३५ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ३७
{कंधार} ॥२॥
{यारवली} ॥२॥
{इज़क खज़त्री} ॥९..॥
{शाह शरफ} ॥१५..॥
{खफनी दे अरथ} ॥२३॥
{मान चंद} ॥४३-६५॥
दोहरा: श्री गुर पग को सिमर अुर रोज खोजि निज रूप
पाइण सहिज सुख को तबै अुधर अंधेरे कूप ॥१॥
रोज=हर दिन, सदा फा:-रोग़॥
सहिज सुख=अुह सुख जो पूरण पद दी प्रापती ते हुंदा है, परमातमा दे
निरंतर मेल दा सुख
अुधर=अुज़चे अुज़ठंा किसे नीवेण थाओण या दशा तोण अुपर आअुणा तर
जाणा संस: अुदधारणं॥
अरथ: श्री गुरू जी देचरनां ळ रिदे (विखे) सदा सिमर (ते) निज सरूप दी खोज
कर तद (संसार रूपी) अंन्हे खूह तोण अुधार (होवे) ते सहिज सुख पा लवेण
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद! सुनि कथा रसाला
गए कणधार मझार क्रिपाला {कंधार}
यारवली इक मुल रहंता {यारवली}
तिह सोण कीन मिलन भगवंता ॥२॥
बूझन हित तिह बचन अुचारा
गुफतो अपनो नाम चि धारा१?
२मा३ नाम नानक निरंकारी
कहै मायना४ करो अुचारी ॥३॥
बंदा हअुण खुदाइ का जानहुण
पुन बूझति निज पीर बखानहुण
यक खुदाइ है दिगर५ न कोई


१कहो की रज़खदे हो अपना नाम ?
२गुरू जी बोले?
३साडा
४अरथ
५दूसरा

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