Sri Nanak Prakash
१८१४
३७. शरन सुख मुलतान दे पीराण नाल गोशट शमस तब्रेग़ दी कथा॥
३६ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ३८
{मुलतान दे पीर} ॥२..॥
{शमसतब्रेग़} ॥३-१८॥{पीर बहावल हज़क} ॥२०॥
{माइआ तोण बिना जग दी कार नहीण-द्रिशटांत} ॥२०..॥
{संत लछन} ॥२५..॥
{हाग़रनामा} ॥२९॥
{फकीरी, जत, सत.. आदि दी अवधी} ॥३४..॥
{शमसतब्रेग़ दी आदि कथा} ॥४४..॥
दोहरा: मन! तजि बिशियन बाशना, भरमोण जनम अनेक
अबि सतिगुर की शरन गहु, पावहिण अनद बिबेक ॥१॥
भरमो=किसे गोल शै विच चज़क्र लगणे आवारा फिरना, गुआच के फिरना,
भटकंा
अरथ: हे मन! विशां दी वाशना छज़ड (जिस करके तूं) अनेकाण जनम भटकदा
फिरिआ हैण हुण सतिगुर दी शरण फड़ जो गान दा आनद पावेण
भाव: इस दोहे विच मन ळ साफ संबोधन करके समोध कीता ने जिस तोण पता
लगदा है कि लग पग सारिआण मंगलां विच निज मन ळ ही समोध कर रहे
हन
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद सुनि परम पविज़त्रा!
जोण पुन होई कथा बचिज़त्रा१
तहिण ते जब कीनो प्रसथाना
पहुणचे नगर जाइ मुलताना ॥२॥ {मुलतान दे पीर}
पीर ब्रिंद जहिण शमस२ समेतामिलनि चहो बेदी कुलकेता
देनि अुपदेश आपनो नीका
जिस बिधि है अुधार इस जी का ॥३॥
शमस तबरेग़* रहति जिह थाईण {शमसतब्रेग़}
१मनोहर
२नाम है फकीर दा
*शमस तब्रेग़ दी खानकाह मुलतान विच है जिज़थे सतिगुरू जी जाके इस खानकाह विच बैठे सन
ओथे यादगीरी विच मंजी साहिब सी, श्री मान संत बसंत सिंघ जी ते कई प्रेमीआण ने आप डिज़ठी
दी साख भरी है कि मंजी साहिब सी, इक ग्रंथी वी रहिणदा सी; पर अुस दा गुग़ारा ना होण करके
अुह टुर गिआ समां पाके मुसलमानां मंजी चा दिज़ती पर इक कंध अुज़ते पंजे दा निशान सतिगुर