Sri Nanak Prakash
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गए मध धीर२, अधीर हरी३ ॥१५॥
बारि४ विखे इक बार कियो बपु५
आनि खरा पतिबारि* अगारी
आनणद कंद पदं अरबिंद
दुअू कर बंदि है बंदन धारी६
लोचन गोचर सोच बिमोचन
रूप७ बिलोकति भा सुख भारी८
बोलि कपोलन९ बोलति भा१०
हरखाइ अतोलत११ है बलिहारी ॥१६॥
बानी अकाश भई सुखरास की१२
जावहु पास अबै करतारा
श्री सचु खंड अखंड सदा
भव मुंडन१३ बास जहां१४, सुख भारा'
यौण सुनि श्री गुरु बैन१५ भने
सुधि१६ या बिधि की१७ अुर मे वरतारा१८
भूपन भूपति जोति सरूप
१चरण
२धीरज वाले विच वड़े
३अधीरज हरन वाले
४जल
५शरीर
*पतिबारि जल पती, वहुण पुरातन जनमसाखी विच एथे वरण देवता नहीण लिखिआ, परमेशुर
दे सेवक लिखिआ है
६भाव वरण ने गुरू जी ळ मज़था टेकिआ
७भाव गुरू जी दा रूप
८भव वरण ळ सुख होया
९गल्हां तोण
१०भाव, वरणबोलिआ
११बहुत
१२भाव रब दी अकाशबाणी तुसां लई होई है कि
१३संसार दे संवारन वाले दा
१४जिथे वासा है
पा:-श्री सचु खंड सदा भव मंडल बास, जहां सुखमा सुख भारा
१५बचन
१६खबर
१७इस तर्हां दी
१८रिदे मेरे वरत रही है