Sri Nanak Prakash
१८४८
३९. पड़्हन, सुणन, प्रेम महिमा करतार पुर निवास, शिवरात्री ळ अचल
पर सिज़धां नाल गोशट आदि॥
३८ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ४०
{करतारपुर निवास} ॥२॥
{अचलवटाले शिवरात्री दा मेला} ॥१६..॥
{सिज़धां ने लोटा छिपाअुणा} ॥४०॥
{दुज़ध विज़च काणजी} ॥४४..॥
{दस दिशा} ॥५४..॥
{सिज़धां ने छुपणा} ॥५४..॥
{गुरू जी ने मुज़छां तोण पकड़के सिज़ध ढूंढंे} ॥६१॥
{गुरू जी ने छिपणा} ॥६१..॥
{सिज़धां दे चेटक} ॥७०..॥
{अजिज़ते ने वी कौतक दिखाअुणे} ॥७६..॥
{गुरू जी ने सिज़धां दी शकती खिज़चंी} ॥७९..॥
दोहरा: पड़न सुननि करि छीर सम, प्रेम समाइन पाइ
लखनो सहिज सरूप को, चख माखन सुखदाइ ॥१॥
छरि=दुज़ध संस: कशीर॥
समाइन=जाग
लखनो=लख लैंा, लखता, पहिचां, सिआण संस: लकश॥
अरथ: पड़्हन (ते) सुणन ळ दुज़ध दे बराबर (समझ) लै (अुस विच) प्रेम रूपी जाग
लगा दे, (नाम दा रिड़कना करके) सहिज सरूप दी लखता (रूपी) सुखदाई
मज़खं ळ (फेर) चज़ख
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद सुनि कथा महानी
कीन पयानो पुन गुनखानी
श्री करतारपुरे चलि आए{करतारपुर निवास}
बंदन करहिण सिज़ख हरखाए ॥२॥
दोनो सुत पाइन पर परे
देखि पिता सो आनणद भरे
सभिनि कीनि अुतसाहु बिशाला
पंचाम्रित बहु किय ततकाला ॥३॥
करि अरदास बाणटि सभि ताई
किरतन की घनघोर१ लगाई
जहिण जहिण सिज़ख हुते सुनि आए
१अुज़ची ते मसत अवाग़ बदलां दी अवाग़ वरगी