Sri Nanak Prakash
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शकति न ऐसी किह नर मांही
वरती रिदे बतावहि तांही१ ॥५६॥
दोहरा: भरजाई पर क्रोध कुछ,
जे करतो मम भ्रात
हाथ बंद करि बेनती,
बखशावति सभि भांति ॥५७॥
चौपई: रोस रतीक न है मन मांही
को कुचाल तिन के तन नांही
आवति जो अुर महिण सो करिईण
किसू लोक की लाज न धरिईण* ॥५८॥
तिह पर नहिण बस मासी! हमरा
सभि गुनऐन जमाता तुमरा
मरम२ जु तिस को जाइ न जाना
कारन कौन बेख इअुण ठाना३ ॥५९॥
रहिन देअु इह ठा भरजाई४
करि मुझ परअुपकार भलाई
जे हठ करि ले जावहु अबही
ओदर जाइ रिदा मम तब ही ॥६०॥
दोहरा: मूला भाखे अब इहा,
तजि करि हम नहिण जाइण
ले जावहिणगे संग निज,
रहनि न हा५ बनि आइ ॥६१॥
चौपई: बहुर नानकी बचन अुचारे
सुनि मासी! नहिण जोर हमारे
हमरी बिनती सुनहु जि काना
छोरि जाहु तुम इह इसथाना ॥६२॥सभि की सुधि लेवहि करतारा
१(किसे दे) दिल वरती गल दज़स देवे
*पा:-कान न करही
२भेद
३कीता है
४एथे भरजाई ळ
५इथे