Sri Nanak Prakash
१९३२
४५. गुरबाणी महातम सैदो घेअु, सिज़खी,अतीतताई, ग्रहसत धरम॥
४४ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ४६
{सैदो घेअु} ॥५..॥
{वरण गुरू जी दी सेवा विज़च} ॥११॥
{सिज़ख, विरकत ते ग्रिहिसथी कैसा होवे?} ॥२२..॥
दोहरा: नमहिण नमहिण पुनि पुनि नमहिण, सतिगुर बचन अनूप
जिन के सुनितो तजि कशट, जानहिण सहिज सरूप ॥१॥
अरथ: श्री सतिगुरू जी दे अनूपम बचनां ळ मेरी नमसकार होवे, नमसकार होवे,
फिर फिर नमसकार होवे कि जिन्हां दे सुणदिआण सारे कशट छड जाणदे हन ते
सहिज सरूप जाणिआण जाणदा है
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद! सुनि कथा अगारी
जो सभि श्रोतन को सुखकारी
पुरि करतार विखै तब आए
बहुर न कित दिश वहिर सिधाए ॥२॥
सवाजाम निस रहे सदाई
जागहिण वहुर वहिर को जाईण
ऐरावती१ बिखै इशनाना
करि बैठहिण तट२ लाइ धिआना ॥३॥
चतुर घटी निस ते पुन आई
बैठहिण धरमसाल सुखदाई
होति कीरतन श्री सतिनामू
सुनति प्रेम अुपजै अभिरामू ॥४॥
सैदो घिअु इक संगति मांही{सैदो घेअु}
दिढ शरधा जिहके अुर मांही
पिखि ब्रितंत गुर को सो भरमा
लखि नहिण सको गूढ जो मरमा३ ॥५॥
इस बिधि जानी तिन मन मांही
-निस महिण श्री गुर सरिता४ जाणही
तहां बैठि जलपति१ को सेवहिण
१रावी
२कंढे
३गुज़झे भेद ळ
४नदी ते