Sri Nanak Prakash
६७६
चौपई: श्री नानक बच सुने सुभागू
भयो सहिज१ ही रिदे विरागू
जाणहि नाम२ अगान मिटावहि३
तिह अुपदेश बोध४ किअुण न आवहि ॥४१॥
बिगस बदन ते बचन प्रकाशा
इज़छा गवन करन किह आसा५?
तुम कारज जो मम आधीना
करोण किअुण न मैण हुइ छलहीना ॥४२॥
तुमरे दरस करख६ मन लीआ
एक आस नासी अब बीआ७
जगति बिकारन ते भी शांती
अुर अनद अुपजा बहु भांती ॥४३॥
दोहरा: कित दिश८ करो पयान अब, संग लेय करि मोह?
सुनि मरदाने के बचन, बोले अनद संदोहि९ ॥४४॥
चौपई: नहीण प्रथम१०* इह कोई विचारा
जहिण ले जावहि श्री करतारा
तित दिश चलहु संग हरिखाए
मोहु लोभ कहु रिदे बिहाए११ ॥४५॥
सुनि प्रभु एक कठनबिधि मोहू
दुह दिश ते मुशकल सी जोहू१२
तुमरी सुधि सुनि पित महितारी१३
१सुते
२जिस दे नाम लैं नाल
३मिटदा है अगान
४गिआन
५किस पासे
६खिज़च
७हुण इज़को आस है होर नाश हो गईआण हन
८किस पासे
९पूरन आनद सरूप
१०पहिले
*पा:-प्रिथक
११रिदे तोण छडके
१२वेखीदी है (अ) जो है
१३पिता ते माता जी ने