Sri Nanak Prakash

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होवहि तव अुर सरुवर२ के सर३
हरि कीरति अरबिंदा४
सद बिकसै, सोखै नहिण५ कबहूं
प्रीति वधहि मकरंदा६
जग सागर७ निदक गर८ लवन९
पदम समान१० अलेपा११
जे सुआन१२ कूकति रहिण अहिनिसि
नहिण गज मज़त विखेपा१३ ॥११॥
खुशीकरी जावन को घर की
पाद१४ पदम१५ युग१६ बंदे
सुनि श्री नानक बचन सुहाए
मुझ भा रिदै अनदे
तलवंडी के मारग चलि करि
आयो अपनि निकेता१७
मुझ पशचातु सुनहु गुर अंगद!
श्री बेदी कुल केता ॥१२॥
भए प्रसीद१८ सुसा पर अतिशै
गवने पुनि अुदिआना


१पिछे गिंे हन (जेहड़े बेमुखता आदि) ओह
२सरोवर
३बरज़बर
४कवल
५सुज़के ना
६मकरंद रस रूपी प्रीत वधे
७समुंदर है
८गल जाणदा है
९लूं वाणू (अ) निदक गरल वन निदक ग़हिर समान है तूं कमल समान होवेणगा
१०कंवल वाणू
११अलेप रहेणगा
१२कुज़ते
१३हाथी (वत) गंभीर मत वाले ळ छोभ नहीण होवेगा
१४चरण
१५कवल
१६दोवेण
१७घर
१८प्रसंन

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