Sri Nanak Prakash
१९७०
४८. शारदा मंगल स्री लहिंा जी दा सेवा करना, पार, माया, संग
तारना, देवतिआण दी नमसकार, अयाली, खडूर॥
४७ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ४९
{संग तारना} ॥५..॥
{देवते गुरू जी दे चरन परसं आअुणदे} ॥२७..॥
{खडूर}
{माया १२ कोह दूर} ॥२०..॥
{अयाली प्रसंग} ॥३६..॥
{सोहिला सौं वेले पड़्हन दी ताकीद} ॥४३॥
{तखत मज़ल चौधरी} ॥५१..॥
दोहरा: स्री सरसती नाम शुभ, मूल सु कविता बेल
फूलन फलनो ललित बहु, अुकति जुगति लख मेल ॥१॥
मूल=जड़्ह ललित=सुंदर,मनमोहन, मनवाणछत संस: ललित॥
अुकति=अुह जो किहा जाए कविता विज़च कोई हाल जो किसे लावंनता नाल
किहा जाए संस: अुकि॥
युकत=जुगति, तरकीब, त्रीका (अ) हंसी, दिल लगी, मौल (ॲ) दलील
संस: युकि॥ काव विच-कोई गज़ल जो किसे कटाख नाल कही जाए जुगत है वंग
या धनी नाल कही जाण वाली गज़ल २. इक अलकार दा नाम है जिस विच
आपणे मरम ळ छिपाअुण वासते किसे क्रिया या बचन आदि युकती नाल दूसरे ळ
किसे होर गज़ल तोण टालके ठग लैणदे हन
अरथ: शुभ नाम वाली श्री सारदा (मानो इक) जड़्ह है (जिस तोण) कविता (रूपी)
वेल (फुज़टी है, इह वेल) अुकतीआण ते जुगतीआण दे लखां मेलां (नाल मानोण)
बड़ी सुंदरता नाल फल ते फुज़ल रही है
भाव: सरसती कवि जी ने इथे कविता दी जड़्ह दज़सी है अंदरले वलवले या भाव
दा वाक विच या लिखत विच अुचारन पा जाण दा नाम कविता है इस दा
मूल दा अंदरला भाव या वलवला जो आपणे आप विच सुंदरता दा लहिराअु
लई अुठदा है, अुस दे प्रकाश होण ते अुस भाव दी छिपी सुंदरता प्रकाश पा
जाणदी है, सो कवि जी सरसती या सारदा ळ एथे केवल कवीआण दे सुंदर मनो
भाव ळ या कवि-मन-हुलास ळ आखरहे हन, अुहनां दे मन दा असल
आशय इज़थे बी सपशट हो गिआ है, सारदा कोई अुहनां दी इशट या धरम
दी भावना वाली पाखां मूरती नहीण, पर केवल कविता दी जड़्ह, जिस ळ
ओह मन दा भाव समझदे हन पर कई थां ऐअुण बी आवाहन करदे हन
जिवेण ओह कोई वकती है, जिवेण जगत दी होर सारी कवी संप्रदा करदी
आई है (विशेश लई वेखो पूरबारध, अधाय १ अंक २)
'अुकति जुकति तोण इस छंद विच कवी जी दी मुराद सारे अलकार वंग धनी अर
होर खूबसूरतीआण तोण है जो कविता विच हुंदीआण हन
चौपई: कितिक दिवस जबि रहति बिताए