Sri Nanak Prakash

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होअूण अधीर बिदेश गए ते
सुनोण न पिखिहोण१ पासू
तजि करि मोह२ जात हो हमरा
किअुण भावहि अुर तेरे
सभि मनकी तुम जान बूझकै
किअुण नरहहु ढिग मेरे ॥४३॥
३चहिये मोह तजन सुनि भगनी!
रजु सनेह४ जे बंधे
नहिण निकेत५ ते निकसनि पावहि
अशटजाम६ फस धंधे७
धरि अुर धीर८ विचार बिबेकू
सिमरन९ ते मैण आवौण
देश बिदेश देखने इज़छा*
ले निदेश तुम१० जावौण ॥४४॥
बहु बिधि बदति११ बचन, दे धीरा१२
दए कारखिक सोअू
लैकरि बिदा चले दुखभंजन
मरदाना संग दोअू१३
बिरहि पीर१४ ते रोदति१५ भगनी


१वेखांगी
२पिआर
३गुरू जी बोले
४मोह रूपी रज़सी नाल
५घर
६अठे पहिर
७फसे रहिंदे हन धंधिआण विच८हौसला
९याद करदिआण ही
*पा:-दोहद
१०तेरी आगा
११आखके
१२धीरज
१३दोवेण
१४विछोड़े दी पीड़
१५रोणदी है

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