Sri Nanak Prakash
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३७. कथा मंगल नानक प्रकाश किन्हां पुसतकाण तोण बणिआ॥
{हिंदालीआण दी खुटाई} ॥२१॥
{गुरू नानक महिमा} ॥५७॥
{सफैद रंग दे द्रिशटांत} ॥५७॥
दोहरा: सागर श्री नानक चरित, बाला मंदर रूप
प्रेम शेश नेती भए, कीनो मथन अनूप ॥१॥
चरित=जीवन दे कौतक संस: चरित्र॥
मंदर=मंदराचल परबत जिसळ मधांी बणा के समुंदर रिड़किआ मंनदे
हन संस: मंदर गिर=मंदराचल पहाड़॥
शेश=शेश नाग मंनदे हन कि मंदराचल दी मधांी ळ शेशनाग रज़सी दी
थावेण पा के समुंदर रिड़किआ सी
नेती=नेत्रा ओह रज़सी जिस नाल मधांी फेरे लैणदी हैमथन=रिड़कना
अरथ: श्री (गुरू) नानक (देव जी दे) चरिज़त्र समुंदर (वत असगाह हन अुस विच)
बाला मंदराचल परबत वाणू है, (मेरा) प्रेम (अुस विच) शेश नाग (समान)
नेत्रा हो गिआ है (इस तर्हां दा) सुंदर रिड़कना मैण कीता है
चौपई: कीरति निरमल१ सुखद सुधा सी२
सुर सिज़खन३ हित४ सुज़ध५ निकासी६
निसचर साकत७ सम मतवारे८
देय न, पीय न, बिघन पसारे९ ॥२॥
रूप मोहनी* अंगद होए
सुरा बिमुखता१० असुर१ बिगोए२
१अुजल
२अंम्रत जेही
३देवते रूप सिज़खां
४वासते
५पवित्र
६कज़ढी
७दैतां तुल जो हन शाकत
८मदमसत
९फैलांदे हन
*कवि जी ने गुरू अंगद जी ळ एथे मोहनी अवतार दा द्रिशटांत दिज़ता है, काइदा इह है कि
द्रिशटांत दा सदा इक अंग लईदा है, सारे अंग नहीण लए जाणदे सो एथे मुराद केवल गुरू
अंगद देव जी दी मोहत कर लैं वाली आतम सुंदरता तोण है, जिन्हां ने गुरू नानक इतिहास
(साखी) जाणूं पुरखां दे हिरदे रूपी समुंदर तोण, (रिड़क के) पुज़छ पुज़छ के कज़ढ लीता सी
१०बेमुखताई रूपी शबद नाल