Sri Nanak Prakash
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कैसे करोण बखाना ॥२७॥
सुनो सुधा पशयंत३ न कबहूं
साद बनो है सोअू
अंतरजामी जानहु तुम सभि
वरतहि अुर महिण जोअू
लालो बिनै सुनाई सुनि कै
वडियन की वडिआई
भाअु पुरख मैण देखति हित करि
असन विचार न काई ॥२८॥
दोहरा: भाजी लीनी बिदर की, दुरजोधन तजि राज
दिजबर४ केतंदुल५ लए, बिरद गरीब निवाज ॥२९॥
जात भीलनी नीच के, जूठे लीने बेर
केवल भाव सुभावई, गुन अवगुन नहिण हेर६* ॥३०॥
दुवज़या छंद: बिगसे श्री नानक मुख भाखी
सुधा असन महिण पावा
इस महिण ते आवति अस सादा
भोजन भलो बनावा
हाथ बंदि अभिबंदति७ लालो
पद अरबिंद मुकंदा
जनम जनम के कलिमल खोए
भव बंधन करि मंदा८ ॥३१॥
सैया: आज कियो किरतारथ मो कहु
श्री गुरु नानक भो९ गतिदाई!
१थोड़ा मुसक्रा के
२कहे
३डिज़ठा
४भाव सुदामे दे
५चावल
६नहीण वेखदे
*द्रिशटांत लई बीत चुके जुज़गां दे भगतां दी भगती पर समेण समेण दे प्रगट महांपुरखां दी गरीब
निवाजता दज़सी है
७नमसकार करदा है
८नाश
९हे