Sri Nanak Prakash
२०१२
५१. गुरयश करन अुपदेश गान अुपदेश भगती दी मिसरी॥
५०ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ५२
{लहिंा जी गान अुपदेश} ॥८..॥
{अहं ब्रहम} ॥४७..॥
{भगती दी मिसरी} ॥५७..॥
दोहरा: श्री गुर गुन मानस सरस, जीह मरालनि जाणहि
करत प्रीत नहिण तज सकै, नमसकार मुर तांहि ॥१॥
सरस=सादीक, सुंदर, रमणीक॥
अरथ: (मेरी) अुस रसना ळ नसमकार है कि जो श्री गुरू जी दे गुणां (दे जस रूपी)
सुंदर मान स्रोवर ळ हंसंी (वाू) प्रीत करदी होई (कदे) छड नहीण सकदी
चौपई: इक दिन बहुर बिताइ क्रिपाला
बैठे हुते रुचिर ध्रमसाला
आतम के अुपदेशन हेता१
बैठारो त्रेहण कुलकेता ॥२॥
२लहिंे सेव अधिक तैण कीनी
बूझहु तज़त चहहु जो चीनी३
ऐसी घाल४ जु घाली५ तोही
कोनहिण वसतु अदेय सु मोही६ ॥३॥
क्रिपा भरी सुनि कै सुठ बानी
बैठो सनमुख सीख सुखानी
दै कर जोर निवायो सीसा
बंदे पद पंकज जगदीशा ॥४॥
निज सरूप लखिनो अभिलाखा
है कै दीन बचन असभाखा
जो मैण हो, कछु जाइ न जाना
हरख शोक महिण फसो महाना ॥५॥
राग दैख निस दिन बहु मोही७
१आतम अुपदेशां दे (देण) वासते
२गुरू जी बोले
३जो जाणिआण चाहुंदे हो
४कमाई
५कमाई है
६जो मैण तैळ ना दिआण
७मैळ है