Sri Nanak Prakash
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३९. गुरचरण मंगल मलक भागो आदि॥
{मलिक भागो} ॥३..॥
{भागो दा परदा फाश} ॥४९..॥
{खान दा पुत्र मरना} ॥८७॥
दोहरा: श्री गुरु चरन सरोज की रज श्रिंखल गल पाइ
मन गोइंद को रोक करि कहोण कथा गतिदाइ ॥१॥
सरोज=कमल श्रिंखल=संगल संस: श्रिंखल॥गल=छापे दे दो ग्रंथां विच पाठ-सर-है, लिखत दे इक विच पाठ-गल-
है असां गल ळ वधेरे सुज़ध समझिआ है
गइंद=हाथी, संस: गजेणद्र॥
अरथ: श्री गुरू जी दे चरन कमलां दी धूड़ी (रूपी) संगल ळ मन रूपी हाथी दे गल
पा के (ते इसळ इस तर्हां) रोक के (हुण मैण) मुकत दाइनी कथा कहिंदा
हां
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: इह बिधि नगर एमनावादू
रहे हेत लालो अहिलादू१
पंद्रह बासुर२ जबहि बितीते
सेवहि चरन कमल अुर प्रीते ॥२॥
हुतो पठान तहां को राजा
निकटि३ सभा जिह दुशट समाजा
तिह मंत्री थो खज़त्री एकू
नाम मलक भागो अविवेकू४ ॥३॥ {मलिक भागो}
हुतो पास तिणह के बहु दरबा५
करि कलिमल६ सो संचो७ सरबा
करन सुजस अपनो नर मांही
ब्रहम भोज कीनो पुरि तांही८ ॥४॥
पा:-सर तुज़ल वा, सिर
१दी खुशी वासते
२पंद्राण दिन
३पास
४अगानी
५धन
६पाप
७कज़ठा कीता सी
८अुसने शहिर विज़च