Sri Nanak Prakash
१३८२
७. संत मंगल कुरखेत्र विखे नानू पंडत नाल चरचा॥
६ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ८
{कुरकशेत्र सूरज ग्रहिं दा मेला} ॥२॥{नाळ पंडत नाल चरचा} ॥२६..॥
{कुरकशेत्र मास नहीण, खीर रिंन्ही} ॥७४॥
दोहरा: पूरन देखो आतमा, दैतहिण सरब निवारि
भए शांति मन संत जे, तिन पद नमो हमारि ॥१॥
दैतहिण=दैत ळ, दुई दी बुज़धी ळ सरब=सारी
निवारि=निवारके, दूर करके
अरथ: जिन्हां संतां ने सारी दैत ळ दूर करके (इक) आतमा ळ (सारे) पूरण
वेखिआ है (ते ऐअुण देख के) शांतिक मन (वाले) हो गए हन अुहनां दे
चरणां ते साडी नमसकार है
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: हित तीरथ के कीनि अुदासी
करना निहाल नरन सुखरासी
प्रथमै कुरखेतर१ महिण आए
बैसे एक थान मन भाए ॥२॥
सूरज परब२ हुतो तिह काला {कुरकशेत्र सूरज ग्रहिं दा मेला}
मेला इकठो भयो बिसाला
दिज आदिक जे चारोण बरने
आवति भे हित मज़जन करने ॥३॥
आश्रम हैण ग्रिहसतादिक जेअू
आवति भे चारोण मिलि तेअू
खट दरशन ते आदि जि अअुरा
पुरबकरन आए तिह ठअुरा ॥४॥
श्री नानक ठानी मन ऐसे
-इन सोण चरचा करीए कैसे
पंडत बडे रिदे जिन गरबा
मानी३ संनासी जे सरबा- ॥५॥
इक सथान महिण कीनो आसन
बैसि रहे मध दंभ बिनाशन१
१अंबाले तोण अगे वार इक पुरातं तीरथ है जिथे महांभारत दा युज़ध होइआ सी
२सूरज ग्रैहण दा पुरब
३मानधारी