Sri Nanak Prakash
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५२. गुरचरण मंगल मछ, कलि, नारद॥
{मज़छ दा प्रसंग} ॥८॥
{मज़छ दा पूरब प्रसंग} ॥१५॥
{कलह मिलाप} ॥२८॥
{नारद मिलाप} ॥३३॥
{स्रोतिआण दा भाई बाले ळ प्रशन} ॥५१॥
{द्रिशटांत गरीब ते अमीर दा पेट दरद} ॥५५॥
दोहरा: श्री गुरु चरन सु छतर सिर सदा अटल जिह छाय
आतप यम की यातना किअुण समीप सो आय ॥१॥
सदा=सदा, हमेश, जो कदे न जाए
अटल=अटज़ल, जो कदे ना टले, मुराद है जो इकरस रहिणदी है
सूरज वाणू सवेरे होर, दुपहिरे होर, लोढे पहिर होर, सिआले होर, हुनाले होर
नहीण हुंदी
आतप=धुज़प
यातना=पीड़, तड़फनी, ओह पीड़ जो नरक विज़च हुंदी हैसमीप=नेड़े
अरथ: श्री गुरू जी दे चरनां (रूपी) स्रेशट छतर (जिसदे) सिर ते है, जिस (छतर
दी) छाया सदा ते अज़टल है, अुस दे नेड़े यम दी पीड़ा (रूपी) धुज़प किअुण
आवेगी
स्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: बासुर कितक बिशंभर मांही
रहि, दुरमति बहु नर की दाही१
मुकति पंथ सिज़खी प्रगटाई
सिमरहि सज़तिनाम सुखदाई ॥२॥
एक दिवस बैसे गतिदानी
बोलो मरदाना अस बानी
इसे सथान रहिन तुम आए
देखो नगर रुचिर मन भाए? ॥३॥
कै तुम निकसे होइ अुदासी
परच रहे करि रिदा बिलासी
अपर देश की कीजै सैला
जित इज़छा गमनहु तित गैला२? ॥४॥
१साड़ी
२अुसदे रसते